खान-पान को लेकर बहुत भ्रांतियां हैं। क्या खाएं, क्या नहीं खाएं, किस तरह खाएं आदि। अगर रोगों से बचना है तो सबसे ज्यादा जरूरी है कि आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर हो और यह तब ही हो सकता है, जब आप वात,कफ और पित्त को संतुलित रखें। इसमें जठराग्नि को बेहतर रखना बहुत जरूरी है। जठराग्नि जिससे पाचनतंत्र बेहतर होता है, उसे जाग्रत रखने के लिए आप खाना खाने के 15 मिनट पहले थोड़े से अदरक में सेंधा नमक मिलाकर खाएं। आयुर्वेद का यह नुस्खा दिल्ली के सर गंगाराम हॉस्पिटल के वरिष्ठ आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ.परमेश्वर अरोड़ा ने शहर आगमन पर हुई मुलाकात में साझा किया।
वे एक निजी कंपनी के च्यवनप्राश की जानकारियां देने शहर आए थे। इस दौरान उन्होंने रोगों से बचाव और रोगों को दूर करने के बारे में चरक संहिता और आयुर्वेद के अनुसार जानकारियां दीं।
उन्होंने आयुर्वेद के सिद्धांत को समझाते हुए कहा कि आयुर्वेद सबसे पहले स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा की बात कहता है और इसके बाद रोग के निदान पर आता है। इसलिए जो स्वस्थ हैं, वे स्वस्थ बने रहने पर ध्यान दें। स्वस्थ रहने के लिए ऋतु संधि काल में विशेष ध्यान रखने का गुर बताया। जब एक ऋतु जाती है तो उसके अंतिम सात दिन और जब दूसरी ऋतु आती है तो उसके शुरुआती सात दिन इस तरह से ये कुल 14 दिनों का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
ऐसे में सुपाच्य, मौसम के अनुरूप और औषधीय युक्त पदार्थ लें। वर्तमान में हम खानपान में क्वालिटी, क्वांटिटी और कॉम्बिनेशन का ध्यान नहीं रख रहे हैं। ऋतु संधि काल में इसका विशेष ध्यान रखें और खाने का समय व तरीका सुधारें।
चार संतरे के बराबर एक आंवला, इसे जरूर खाएं
इम्युनिटी सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए विटामिन सी सबसे बेहतर उपाय है। विटामिन सी बेशक संतरा, नींबू, इमली जैसे खट्टे फलों में मिलता है, लेकिन इसका सबसे उत्तम स्त्रोत आंवला है। चार संतरे के बराबर एक आंवले में विटामिन सी होता है। अन्य खट्टे फलों की अपेक्षा आंवले में विटामिन सी 20 गुना ज्यादा होता है। आंवला भले ही सूख चुका हो, मगर उसका विटामिन सी खत्म नहीं होता। इसलिए च्यवनप्राश में आंवला ही डाला जाता है और उसके साथ औषधियां मिलाई जाती हैं।
इस औषधि से दूर हो सकती है खांसी
डॉ. अरोड़ा ने बताया कि आयुर्वेद के अनुसार सितोपलादि चूर्ण से हर प्रकार की खांसी दूर की जा सकती है। यह चूर्ण घर पर भी बनाया जा सकता है। जितनी मात्रा में मिश्री लें उससे आधी मात्रा में तुगाश्री (वंशलोचन) लें, तुगाश्री से आधी मात्रा में पिपली इसकी आधी मात्रा में इलायची और इलायची की आधी मात्रा में दालचीनी लें। इनके चूर्ण को मिलाकर शहद के साथ खाएं। इसके अलावा यदि जठराग्नि मंद पड़ गई है तो उसे दुरुस्त करने के लिए सौंठ, कालीमिर्च और पिपली को समान मात्रा में लेकर उसका पाउडर नींबू पर लगाकर चाटें।
इन भ्रमों से रहें दूर
* खड़े-खड़े पानी पीने से घुटनों में दर्द नहीं होता।
* ज्यादा पानी पीने की बजाए उतना ही पानी पिएं जितना शरीर मांगे।
* हेमंत, शिशिर और वर्षा ऋतु में दही खाना गलत नहीं। दही ताजा होना चाहिए।
* सूखे मेवे उतने ही खाएं जितना उसे पचा सकें।
* च्यवनप्राश गर्मी करता है यह भी गलत है।
* दही की तासीर गर्म होती है ठंडी नहीं।
ऐसा हो खानपान
* सुबह का भोजन 9 से 10 बजे और शाम का भोजन सूर्यास्त के पहले कर लें।
* भोजन करने के 4 घंटे बाद तक कुछ खाएं नहीं, लिक्विड ले सकते हैं।
* दोपहर में फल और रात को दूध लेना उत्तम होता है।
* ग्रीष्म, शरद, बसंत ऋतु और रात्रि में दहीं नहीं खाना चाहिए।
* जब जठराग्नि मंद हो तो हल्का खाना खाएं या लिक्विड डाइट लें।
* खाने के तुरंत बाद दूध पीने से खाने की तीक्ष्णता के कुप्रभाव कम हो जाते हैं।
वे एक निजी कंपनी के च्यवनप्राश की जानकारियां देने शहर आए थे। इस दौरान उन्होंने रोगों से बचाव और रोगों को दूर करने के बारे में चरक संहिता और आयुर्वेद के अनुसार जानकारियां दीं।
उन्होंने आयुर्वेद के सिद्धांत को समझाते हुए कहा कि आयुर्वेद सबसे पहले स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा की बात कहता है और इसके बाद रोग के निदान पर आता है। इसलिए जो स्वस्थ हैं, वे स्वस्थ बने रहने पर ध्यान दें। स्वस्थ रहने के लिए ऋतु संधि काल में विशेष ध्यान रखने का गुर बताया। जब एक ऋतु जाती है तो उसके अंतिम सात दिन और जब दूसरी ऋतु आती है तो उसके शुरुआती सात दिन इस तरह से ये कुल 14 दिनों का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है।
ऐसे में सुपाच्य, मौसम के अनुरूप और औषधीय युक्त पदार्थ लें। वर्तमान में हम खानपान में क्वालिटी, क्वांटिटी और कॉम्बिनेशन का ध्यान नहीं रख रहे हैं। ऋतु संधि काल में इसका विशेष ध्यान रखें और खाने का समय व तरीका सुधारें।
चार संतरे के बराबर एक आंवला, इसे जरूर खाएं
इम्युनिटी सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए विटामिन सी सबसे बेहतर उपाय है। विटामिन सी बेशक संतरा, नींबू, इमली जैसे खट्टे फलों में मिलता है, लेकिन इसका सबसे उत्तम स्त्रोत आंवला है। चार संतरे के बराबर एक आंवले में विटामिन सी होता है। अन्य खट्टे फलों की अपेक्षा आंवले में विटामिन सी 20 गुना ज्यादा होता है। आंवला भले ही सूख चुका हो, मगर उसका विटामिन सी खत्म नहीं होता। इसलिए च्यवनप्राश में आंवला ही डाला जाता है और उसके साथ औषधियां मिलाई जाती हैं।
इस औषधि से दूर हो सकती है खांसी
डॉ. अरोड़ा ने बताया कि आयुर्वेद के अनुसार सितोपलादि चूर्ण से हर प्रकार की खांसी दूर की जा सकती है। यह चूर्ण घर पर भी बनाया जा सकता है। जितनी मात्रा में मिश्री लें उससे आधी मात्रा में तुगाश्री (वंशलोचन) लें, तुगाश्री से आधी मात्रा में पिपली इसकी आधी मात्रा में इलायची और इलायची की आधी मात्रा में दालचीनी लें। इनके चूर्ण को मिलाकर शहद के साथ खाएं। इसके अलावा यदि जठराग्नि मंद पड़ गई है तो उसे दुरुस्त करने के लिए सौंठ, कालीमिर्च और पिपली को समान मात्रा में लेकर उसका पाउडर नींबू पर लगाकर चाटें।
इन भ्रमों से रहें दूर
* खड़े-खड़े पानी पीने से घुटनों में दर्द नहीं होता।
* ज्यादा पानी पीने की बजाए उतना ही पानी पिएं जितना शरीर मांगे।
* हेमंत, शिशिर और वर्षा ऋतु में दही खाना गलत नहीं। दही ताजा होना चाहिए।
* सूखे मेवे उतने ही खाएं जितना उसे पचा सकें।
* च्यवनप्राश गर्मी करता है यह भी गलत है।
* दही की तासीर गर्म होती है ठंडी नहीं।
ऐसा हो खानपान
* सुबह का भोजन 9 से 10 बजे और शाम का भोजन सूर्यास्त के पहले कर लें।
* भोजन करने के 4 घंटे बाद तक कुछ खाएं नहीं, लिक्विड ले सकते हैं।
* दोपहर में फल और रात को दूध लेना उत्तम होता है।
* ग्रीष्म, शरद, बसंत ऋतु और रात्रि में दहीं नहीं खाना चाहिए।
* जब जठराग्नि मंद हो तो हल्का खाना खाएं या लिक्विड डाइट लें।
* खाने के तुरंत बाद दूध पीने से खाने की तीक्ष्णता के कुप्रभाव कम हो जाते हैं।