99 साल से ये जैन परिवार कर रहे है अपने ब्राह्मण मुनीम का श्राद्ध

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खिरकिया का एक जैन परिवार 99 साल पहले अपने पूर्वजों द्वारा तत्कालीन ब्राह्मण मुनीम को दिए वचन को निभाने आज भी उनका श्राद्ध करता आ रहा है। जैन समाज में श्राद्ध कर्म को मान्यता नहीं है, इसलिए यह परिवार श्राद्ध पक्ष समाप्त होने के दो दिन बाद श्राद्ध करता है। खास यह भी है कि इस परिवार के सदस्य देश के विभिन्न् शहरों में रहते हैं, लेकिन सभी जगह एक ही दिन एक साथ श्राद्ध करते हैं।

जहाज डूबा तो सब छोड़ गए, मुनीम ने साथ नहीं छोड़ा था

खिरकिया के प्रतिष्ठित विनायक (जैन) परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य निर्मल जैन और रितेश जैन ने बताया कि करीब सौ-सवा सौ साल पहले उनके परदादा का महेश्वर में सूत का बड़ा कारोबार था, जो राजमल हरकचंद फर्म के नाम से चलता था। इस फर्म में बड़ी संख्या में मुनीम, गुमाश्ते, नौकर-चाकर कार्य करते थे।

उस दौरान उनका सूत से भरा एक जहाज समुद्र में डूब गया था, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति डगमगा गई। अधिकांश कर्मचारी काम छोड़कर चले गए, लेकिन अमीरचंद नामक ब्राह्मण मुनीम ने जैन परिवार का साथ नहीं छोड़ा। वर्ष 1920 में मुनीम अमीरचंद ज्यादा बीमार हुए, तो उन्होंने यह चिंता जताई थी कि वे निसंतान हैं, इसलिए मृत्यु उपरांत उनका श्राद्ध कर्म कौन करेगा।

तब परदादा राजमल जैन ने मुनीम को वचन दिया था कि जैन धर्म में श्राद्ध कर्म की मान्यता नहीं है। इसके बावजूद हमारा परिवार आपका श्राद्ध करता रहेगा। जब मुनीम अमीरचंद का निधन हुआ तो वचन के अनुरूप जैन परिवार ने श्राद्ध शुरू कर दिया।

महेश्वर छोड़कर खिरकिया आ बसे थे पूर्वज

करीब 85 साल पहले यह जैन परिवार महेश्वर छोड़कर खिरकिया आकर बस गया। तब राजमल जैन के छह पुत्रों भूरालाल, ज्ञानचंद, हुकमचंद, कस्तूरचंद, कन्हैयालाल और जड़ावचंद ने अलग-अलग घर बना लिए, लेकिन मुनीमजी का श्राद्ध हर घर में होता है। कालांतर में इन छह भाइयों के पुत्र-पौत्र आदि भी व्यापार के सिलसिले में अलग-अलग शहरों में बस गए। पीढ़ियां बदल गईं, लेकिन पूर्वजों के वचन को आज भी निभा रहे हैं। राजमल जैन के एक चचेरे भाई छीतरमल जैन महेश्वर में ही रह गए थे।

वहां उनके पुत्र महेश जैन मुनीमजी का श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध पक्ष समाप्त होने के दो दिन बाद करते हैं श्राद्ध चौथी पीढ़ी के ही सदस्य विवेक जैन का कहना है कि यह सच है कि जैन धर्म में श्राद्ध कर्म का कोई स्थान नहीं है, लेकिन जैन धर्म में अपने सहकर्मियों को परिवार का सदस्य माना जाता है। इसीलिए हम लोग श्राद्धपक्ष समाप्त होने के बाद आश्विन शुक्ल पक्ष द्वितीया को पूरे विधिविधान से मुनीमजी का श्राद्ध करते हैं।

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