श्री गणेश मंत्र-वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।
गणेश चतुर्थी यानी गणेशजी के अवतरण का दिन। सनातन धर्म के त्योहारों में गणेश चतुर्थी एक मुख्य त्योहार है जो भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। हमारे इतिहास में भी गणेश चतुर्थी का खास महत्व है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जनजागृति जगाने के लिए बालगंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के उत्सवों का आयोजन करने का आह्वान किया था। मूलत: महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला यह त्योहार लगभग पूरे उत्तर भारत में उसी आस्था और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेशजी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ट दिन है, लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेशजी दोपहर में अवतरित हुए थे, इसलिए यह गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी बताई जाती है पूरे देश में यह त्योहार गणेशोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है लोक भाषा में इस त्योहार को डण्डा चौथ भी कहा जाता है।
मिट्टी की प्रतिमा का दर्शन-
इस दिन घर-घर में और सामूहिक रूप से भी गणेशजी की मिट्टी की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इसके अनेकार्थ है। एक तो यह कि इस बहाने ही मिट्टी के कलाकारों को रोजगार मिलता है, दूसरा मिट्टी की प्रतिमा का विसर्जन सरल है। इसे हर कोई खरीद सकता है और अपने घर में स्थापित कर सकता है। प्रतिमा का विसर्जन उस मोह का भी विसर्जन है, जो 10 दिन गणपति के आतिथ्य से उपजा है।
गणेशजी का स्वरूप देता है प्रेरणा
गणपति आदिदेव है उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है।
ऊं-आकार
शिवमानस पूजा में श्रीगणेश को प्रणव (ऊं) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेशजी का मस्तक नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूंड है। चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं है। वे लंबोदर है क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है, गणेशजी बुद्धि के देवता है। कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पहले उनका नाम लेने का अर्थ है कि यदि हम बुद्धि का सद्पयोग करेंगे तो कार्य अवश्य सफल होगा।
क्यों हैं भालचंद्र? -
गणेशजी के मस्तक (भाल) पर द्वितीया का चंद्रमा सुशोभित रहता है, इसलिए उन्हें भालचंद्र भी कहते है। यही चंद्रमा शिव के भाल पर भी विद्यमान है। चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है। इसका अर्थ हम यह ग्रहण करें कि जिसके मन-मस्तिष्क में शीतलता और शांति होगी वही बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान सरलता से कर सकता है। आखिर वे बुद्धि के देवता है। बुद्धि तभी काम करती है, जब हमारा दिमाग ठंडा हो।
वे गजानन है-
उनका मुख (गज) हाथी का है, हाथी स्वयं ही विशाल मस्तिष्क और विपुल बुद्धि का प्रतीक हंै। बड़े कान का अर्थ है बात को गहराई से सुना जाए। उनके कान सूप की तरह है और सूप का स्वभाव है कि वह सार-सार को ग्रहण कर लेता है और कूड़ा-करकट को उड़ा देता है। लंबी सूंड तीव्र घ्राणशक्ति की महत्ता को प्रतिपादित करती है। जो विवेकी व्यक्ति है, वह अपने आसपास के माहौल को पहले ही सूंघ सकता है।
एकदंत है गणेश-
गणेशजी का एक ही दांत है, दूसरा दांत खंडित है। यह गणेशजी की कार्यक्षमता और दक्षता का बोधक है। एकदंत होते हुए भी वे पूर्ण है। यह इस बात का सूचक है कि हमें अपनी कमी का रोना न रोते हुए, जो भी हमारे पास संसाधन उपलब्ध है, उसी में हमें दक्षता के साथ कार्य सम्पन्ना करना चाहिए। गणेशजी का उदर यानी पेट काफी बड़ा है, इसलिए उन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। लंबोदर स्वरूप से हमें ग्रहण करना चाहिए कि बुद्धि के द्वारा हम समृद्धि प्राप्त कर सकते है और सबसे बड़ी समृद्धि प्रसन्नाता है।
पाश और अंकुशधारी-
गणेशजी के हाथ में अंकुश और पाश है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अंकुश और पाश की आवश्यकता पड़ती है। अपने चंचल मन पर अंकुश लगाने की अत्यंत आवश्यकता है।अपने भीतर की बुराइयों को पाश में फंसाकर आप उन पर अंकुश लगा सकते है।
जब चंद्रमा को दिया श्राप-
हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इस रात्रि को चंद्र दर्शन करने से झूठे आरोप लगते है। इस संबंध में एक कथा है कि जब भगवान गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजानन कहलाए और माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण अग्रपूज्य हुए।
सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराते रहें उन्हें अपने सौंदर्य पर अभिमान था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमान वश उनका उपहास कर रहे हैं। क्रोध में आकर भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि - आज से तुम काले हो जाओगे। चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ।
उन्होंने श्रीगणेश से क्षमा मांगी तो गणेशजी ने कहा कि सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण हो जाओगे यानी पूर्ण प्रकाशित होंगे। चतुर्थी का यह दिन तुम्हें दण्ड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
इस दिन को याद कर कोई अन्य व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा। जो कोई व्यक्ति भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। श्रीमद्भागवत के अनुसार इस दिन चांद देखने से ही भगवान श्रीकृष्ण को मिथ्या कंलक का दोष लगा था जिससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत किया था।
गणेशजी के प्रमुख बारह नाम-
गणेशजी का महत्व भारतीय धर्म में सर्वोपरि है, उन्हें हर नए कार्य, हर बाधा या विघ्न के समय में बड़ी उम्मीद से याद किया जाता है गणेशजी को देव समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गणेशजी का वाहन चूहा है इनकी दो पत्नियां भी हैं जिन्हे रिद्धि और सिद्धि के नाम से जाना जाता है। इनका सर्वप्रिय भोग मोदक यानी लड्डू है।
माता पिता भगवान शंकर व पार्वती भाई श्रीकार्तिकेय एवं बहन अशोक सुन्दरी हैं। गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख है- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूमकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। विद्यारम्भ तथा विवाह के पूजन के समय इन नामों से गणपति की आराधना का विधान है।
गणेश चतुर्थी यानी गणेशजी के अवतरण का दिन। सनातन धर्म के त्योहारों में गणेश चतुर्थी एक मुख्य त्योहार है जो भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। हमारे इतिहास में भी गणेश चतुर्थी का खास महत्व है। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जनजागृति जगाने के लिए बालगंगाधर तिलक ने गणेश चतुर्थी के उत्सवों का आयोजन करने का आह्वान किया था। मूलत: महाराष्ट्र में मनाया जाने वाला यह त्योहार लगभग पूरे उत्तर भारत में उसी आस्था और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
वैसे तो प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, गणेशजी के पूजन और उनके नाम का व्रत रखने का विशिष्ट दिन है, लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेशजी के सिद्धि विनायक स्वरूप की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेशजी दोपहर में अवतरित हुए थे, इसलिए यह गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी बताई जाती है पूरे देश में यह त्योहार गणेशोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है लोक भाषा में इस त्योहार को डण्डा चौथ भी कहा जाता है।
मिट्टी की प्रतिमा का दर्शन-
इस दिन घर-घर में और सामूहिक रूप से भी गणेशजी की मिट्टी की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। इसके अनेकार्थ है। एक तो यह कि इस बहाने ही मिट्टी के कलाकारों को रोजगार मिलता है, दूसरा मिट्टी की प्रतिमा का विसर्जन सरल है। इसे हर कोई खरीद सकता है और अपने घर में स्थापित कर सकता है। प्रतिमा का विसर्जन उस मोह का भी विसर्जन है, जो 10 दिन गणपति के आतिथ्य से उपजा है।
गणेशजी का स्वरूप देता है प्रेरणा
गणपति आदिदेव है उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है।
ऊं-आकार
शिवमानस पूजा में श्रीगणेश को प्रणव (ऊं) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेशजी का मस्तक नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूंड है। चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं है। वे लंबोदर है क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है, गणेशजी बुद्धि के देवता है। कोई भी कार्य प्रारंभ करने से पहले उनका नाम लेने का अर्थ है कि यदि हम बुद्धि का सद्पयोग करेंगे तो कार्य अवश्य सफल होगा।
क्यों हैं भालचंद्र? -
गणेशजी के मस्तक (भाल) पर द्वितीया का चंद्रमा सुशोभित रहता है, इसलिए उन्हें भालचंद्र भी कहते है। यही चंद्रमा शिव के भाल पर भी विद्यमान है। चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है। इसका अर्थ हम यह ग्रहण करें कि जिसके मन-मस्तिष्क में शीतलता और शांति होगी वही बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान सरलता से कर सकता है। आखिर वे बुद्धि के देवता है। बुद्धि तभी काम करती है, जब हमारा दिमाग ठंडा हो।
वे गजानन है-
उनका मुख (गज) हाथी का है, हाथी स्वयं ही विशाल मस्तिष्क और विपुल बुद्धि का प्रतीक हंै। बड़े कान का अर्थ है बात को गहराई से सुना जाए। उनके कान सूप की तरह है और सूप का स्वभाव है कि वह सार-सार को ग्रहण कर लेता है और कूड़ा-करकट को उड़ा देता है। लंबी सूंड तीव्र घ्राणशक्ति की महत्ता को प्रतिपादित करती है। जो विवेकी व्यक्ति है, वह अपने आसपास के माहौल को पहले ही सूंघ सकता है।
एकदंत है गणेश-
गणेशजी का एक ही दांत है, दूसरा दांत खंडित है। यह गणेशजी की कार्यक्षमता और दक्षता का बोधक है। एकदंत होते हुए भी वे पूर्ण है। यह इस बात का सूचक है कि हमें अपनी कमी का रोना न रोते हुए, जो भी हमारे पास संसाधन उपलब्ध है, उसी में हमें दक्षता के साथ कार्य सम्पन्ना करना चाहिए। गणेशजी का उदर यानी पेट काफी बड़ा है, इसलिए उन्हें लंबोदर भी कहा जाता है। लंबोदर स्वरूप से हमें ग्रहण करना चाहिए कि बुद्धि के द्वारा हम समृद्धि प्राप्त कर सकते है और सबसे बड़ी समृद्धि प्रसन्नाता है।
पाश और अंकुशधारी-
गणेशजी के हाथ में अंकुश और पाश है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में अंकुश और पाश की आवश्यकता पड़ती है। अपने चंचल मन पर अंकुश लगाने की अत्यंत आवश्यकता है।अपने भीतर की बुराइयों को पाश में फंसाकर आप उन पर अंकुश लगा सकते है।
जब चंद्रमा को दिया श्राप-
हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं करने चाहिए क्योंकि इस रात्रि को चंद्र दर्शन करने से झूठे आरोप लगते है। इस संबंध में एक कथा है कि जब भगवान गणेश को गज का मुख लगाया गया तो वे गजानन कहलाए और माता-पिता के रूप में पृथ्वी की सबसे पहले परिक्रमा करने के कारण अग्रपूज्य हुए।
सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की पर चंद्रमा मंद-मंद मुस्कुराते रहें उन्हें अपने सौंदर्य पर अभिमान था। गणेशजी समझ गए कि चंद्रमा अभिमान वश उनका उपहास कर रहे हैं। क्रोध में आकर भगवान श्रीगणेश ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि - आज से तुम काले हो जाओगे। चंद्रमा को अपनी भूल का अहसास हुआ।
उन्होंने श्रीगणेश से क्षमा मांगी तो गणेशजी ने कहा कि सूर्य के प्रकाश को पाकर तुम एक दिन पूर्ण हो जाओगे यानी पूर्ण प्रकाशित होंगे। चतुर्थी का यह दिन तुम्हें दण्ड देने के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
इस दिन को याद कर कोई अन्य व्यक्ति अपने सौंदर्य पर अभिमान नहीं करेगा। जो कोई व्यक्ति भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन तुम्हारे दर्शन करेगा, उस पर झूठा आरोप लगेगा। श्रीमद्भागवत के अनुसार इस दिन चांद देखने से ही भगवान श्रीकृष्ण को मिथ्या कंलक का दोष लगा था जिससे मुक्ति पाने के लिए उन्होंने विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत किया था।
गणेशजी के प्रमुख बारह नाम-
गणेशजी का महत्व भारतीय धर्म में सर्वोपरि है, उन्हें हर नए कार्य, हर बाधा या विघ्न के समय में बड़ी उम्मीद से याद किया जाता है गणेशजी को देव समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। गणेशजी का वाहन चूहा है इनकी दो पत्नियां भी हैं जिन्हे रिद्धि और सिद्धि के नाम से जाना जाता है। इनका सर्वप्रिय भोग मोदक यानी लड्डू है।
माता पिता भगवान शंकर व पार्वती भाई श्रीकार्तिकेय एवं बहन अशोक सुन्दरी हैं। गणेशजी के अनेक नाम हैं लेकिन ये 12 नाम प्रमुख है- सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्ननाशक, विनायक, धूमकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन। विद्यारम्भ तथा विवाह के पूजन के समय इन नामों से गणपति की आराधना का विधान है।