मैं हाथ धुलूँ, चेहरे को न छुऊँ,
और दूर सभी से रहूँ।
घर से न निकलूँ बार-बार,
कर दूँ मैं तुझे ज़ार-ज़ार।
ओ कोरोना, क्यों है तुझे लेकर रोना।। ----2
न कभी सिरदर्द करे, न सांसों में पहरेदार खड़े,
शरीर भी न कभी गर्म पड़े।
खाँसी आए न बार-बार,
खाऊं मैं पौष्टिक आहार।
ओ कोरोना, क्यों है तुझे लेकर रोना।। ----2
मैं न चीनी बाज़ारी हूँ, न चमगादड़ से बैर मेरा,
मैं समाजसेवी जीवनरक्षक हूँ।
जन जागरुकता फैलाऊँ मैं बार-बार,
आ जा कर लें अब आर-पार।
ओ कोरोना, क्यों है तुझे लेकर रोना।। ----2
लेखिका-
श्रद्धा पाठक
सतना, मध्यप्रदेश, भारत