चीन एक बार फिर पूरी दुनिया की मुश्किल बढ़ा रहा है। इस बार समस्या के केंद्र में वायरस से फैली महामारी नहीं, बल्कि महंगाई है जिसके पीछे चीन की बड़ी भूमिका बताई जा रही है। दरअसल कोविड-19 महामारी से उबरने के बाद चीन में सप्लाई चेन तेजी से मजबूत हुई, जिसके कारण मांग लगातार बढ़ रही है। इसका सीधा असर अंतरराष्ट्रीय कमोडिटी बाजार पर हुआ, जहां पिछले तीन महीनों में कच्चे तेल और स्टील की कीमतें क्रमशः 30 प्रतिशत और 15 प्रतिशत बढ़ गईं।
हालांकि कमोडिटी की कीमतें अब तक अपनी-अपनी ऐतिहासिक ऊंचाई पर नहीं पहुंची हैं, लेकिन विश्लेषकों को आशंका है कि कच्चे माल की लागत तेजी से बढ़नी शुरू हो सकती हैं। जेएम फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशनल सिक्योरिटीज के विश्लेषकों को लगता है कि वाहन, विमानन, उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुएं और विभिन्न अन्य औद्योगिक क्षेत्र, जिसमें फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स भी शामिल हैं, धीरे-धीरे लागत बढ़ने का बोझ ग्राहकों पर डालना शुरू करेंगे।
अमेरिकी नीति भी जिम्मेदार
अमेरिका की मौजूदा मौद्रिक नीति वर्ष 2021 में महंगाई बढ़ाने और संपत्तियों की कीमतों में कृत्रिम इजाफा लाने जा रही है। लॉरेन सिमोन जैसे कुछ अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का मानना है कि फेडरल रिजर्व शून्य ब्याज और पैसे की असीमित आपूर्ति की जो नीति अपना रहा है, उसके चलते लंबी अवधि में कीमतों में स्थिरता और पूर्ण रोजगार का लक्ष्य तो हासिल नहीं हो पाएगा, लेकिन कमोडिटी और शेयरों की कीमतों में उछाल जरूर आएगा। इसका असर केवल अमेरिका पर नहीं, बल्कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं पर होने की आशंका जताई जा रही है। हालात पर नजर रखी जा रही है।